Wednesday, October 29, 2008

कहां खड़े हैं हम


एक बार फिर क्षेत्रवाद ने हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठाया है। महाराष्ट्र में राज ठाकरे जो कर रहे हैं उसका तात्कालिक हित तो उन्हें दिख रहा है लेकिन दूरगामी नतीजा उनके लिए भी शुभ नहीं... रेलवे की परीक्षा देने गए उत्तर भारतीय परीक्षार्थियों पर एमएनएस के कायर्कर्ताओं ने जो मारपीट की उसकी प्रतिक्रिया दिखनी शुरु हो गई है। बिहार में जिस तरह छात्रों ने आंदोलन किया उससे माहौल गरमाने के आसार ही ज्यादा थे, ये अलग बात है कि हर वर्ग के छात्रों का समर्थन उसे नहीं मिला वरना रुप कुछ और ही होता...इसके कुछ दिन बाद ही मुंबई पुलिस ने जिस तरह राहुल राज को मार दिया ये निहायत ही शर्मनाक है... जिसे गिरफ्तार किया जा सकता था उसे मार दिया गया जैसे वो दाऊद गैंग का गुर्गा हो... और तो और महाराष्ट्र सरकार ने भी उसे समर्थन ही दिया...सबसे दुखद है कि केंद्र सरकार भी शिवसेना के खिलाफ राज ठाकरे को हवा दे रही है ताकि उसकी ज़मीन तैयार हो, वोट बैंक का घिनौना खेल ही इस समाज की जड़ खोद रहा है.. राज ठाकरे को अंदाज़ा नहीं कि अगर जिस दिन दूसरे राज्यों में मराठी लोगों को मारा जाने लगे तो क्या होगा और यदि महाराष्ट्र में ही यूपी बिहार के लोग हिंसा पर उतर आएं और दंगे भड़क जाएं तो क्या होगा... ऐसी स्थिति से हमें बचना होगा सियासत का ये नंगा नाच रोकना होगा।

Monday, October 13, 2008

आप हमेशा याद आओगे....

पिछले दिनों पिताजी का देहान्त हो गया... हमेशा के लिए वो साथ छोड़कर चले गए...लेकिन उनकी
सिखाई बातें, उनकी डांट.. उनका दुलार ताउम्र याद रहेगा... पिताजी एक सीधे-सादे इंसान थे, कभी किसी
का बुराई नहीं हमेशा सबका भला चाहा... किसी से ऊंची आवाज़ में बात नहीं की तभी तो एहसास हुआ
कि उनके निधन पर गांव-जवार का हर आदमी रो रहा था... ज़मीदार खानदान से होने के बावजूद
भी उन्होंने किसी में कोई फर्क नहीं किया...उनके जीवन का एक ही सिद्धांत था--- ईमानदारी से जियो,
थोड़ी तकलीफ होगी लेकिन इसी में मज़ा है... कहते थे दामन पर दाग लग गया तो ज़िंदगी बेमज़ा
हो जाती है.. उन्होंने कभी किसी चीज़ का दबाव नहीं डाला... कहते थे अपने मन का काम करो, लेकिन याद रखना काम ऐसा हो कि शर्मिंदा ना हो.. मुझे कभी भी कोई बात खटकती तुरंत उनसे पूछता और वो बेहिचक समस्या सुलझा देते.. बिल्कुल एक दोस्त की तरह...एक वाकया याद आता है..उस वक्त पिताजी आज़मगढ़ के फूलपुर में पोस्टेड थे औऱ मैं चौथी क्लास में था, पंद्रह अगस्त का दिन था मेरे पास जूते थे लेकिन मैंने ज़िद कर दी मुझे नए जूते चाहिए, स्कूल परेड के लिए, पिताजी ने डांटा नहीं साथ लेकर सुबह-सुबह निकल पड़े.. एक हाजी साहब की दुकान थी, पिताजी ने उनकी दुकान खुलवाई और मुझे जूते दिलवाए..ऐसे ही जब दशहरे के मेले लगते थे तो मैं उनके साथ निकलता और ढेर सारे खिलौनों के साथ लौटता और आने पर मां कहती आप तो बेटे को बिगाड़ दोगे लेकिन पिताजी मुस्कुरा कर कहते ये नहीं बिगड़ेगा मेरे संस्कारों की धूप जो इसे सींच रही है...पिताजी आप तो चले गए
लेकिन वाकई आपके दिए संस्कारों से ही मेरी दुनिया रोशन है और चल रही है.. पंद्रह अगस्त और दशहरे के मेले तो हर साल आएंगे लेकिन वो दिन फिर कभी नहीं आएंगे....

धमाकें होते रहें तो अच्छा


पिछले दिनों आतंकवाद को लेकर पूरे देश में तमाम हलचल रही, अब मामला कुछ ठंडा हो रहा है। उसकी तो वजह थी हर जगह बम जो बरस रहे थे, खुफिया एजेंसियां औऱ सरकार नाकाम, लेकिन
बयान देने में सबसे आगे, गृह मंत्री जी तो केवल एक ही बयान बार-बार देते, जैसे लगता शपथ ग्रहण
के समय ही उसे अपने पीए टाइप करा लिया हो, इस दौरान मीडिया वालों ने उनकी जमकर खबर ली,
लेकिन महरौली ब्लास्ट के बाद वो डरकर नहीं बोले, सोचा कहीं कुर्सी न चली जाए। इसके अलावा
हर जगह बस इसी पर बहस, कभी फेडरल एजेंसी की बात तो कभी किसी सख्त कानून की मांग
फिलहाल ये मुद्दे नरम हैं अब ये गरम तभी होंगे जब तक अगला ब्लास्ट ना हो जाए। वो दिन भी
दूर नहीं कभी भी ऐसा हो सकता है, हमें तो आदत सी पड़ गई है, जनता तो मरने के लिए है ही, सियासतदानों की मौज है उनकी दुकान जो चलती है....