Monday, October 13, 2008

आप हमेशा याद आओगे....

पिछले दिनों पिताजी का देहान्त हो गया... हमेशा के लिए वो साथ छोड़कर चले गए...लेकिन उनकी
सिखाई बातें, उनकी डांट.. उनका दुलार ताउम्र याद रहेगा... पिताजी एक सीधे-सादे इंसान थे, कभी किसी
का बुराई नहीं हमेशा सबका भला चाहा... किसी से ऊंची आवाज़ में बात नहीं की तभी तो एहसास हुआ
कि उनके निधन पर गांव-जवार का हर आदमी रो रहा था... ज़मीदार खानदान से होने के बावजूद
भी उन्होंने किसी में कोई फर्क नहीं किया...उनके जीवन का एक ही सिद्धांत था--- ईमानदारी से जियो,
थोड़ी तकलीफ होगी लेकिन इसी में मज़ा है... कहते थे दामन पर दाग लग गया तो ज़िंदगी बेमज़ा
हो जाती है.. उन्होंने कभी किसी चीज़ का दबाव नहीं डाला... कहते थे अपने मन का काम करो, लेकिन याद रखना काम ऐसा हो कि शर्मिंदा ना हो.. मुझे कभी भी कोई बात खटकती तुरंत उनसे पूछता और वो बेहिचक समस्या सुलझा देते.. बिल्कुल एक दोस्त की तरह...एक वाकया याद आता है..उस वक्त पिताजी आज़मगढ़ के फूलपुर में पोस्टेड थे औऱ मैं चौथी क्लास में था, पंद्रह अगस्त का दिन था मेरे पास जूते थे लेकिन मैंने ज़िद कर दी मुझे नए जूते चाहिए, स्कूल परेड के लिए, पिताजी ने डांटा नहीं साथ लेकर सुबह-सुबह निकल पड़े.. एक हाजी साहब की दुकान थी, पिताजी ने उनकी दुकान खुलवाई और मुझे जूते दिलवाए..ऐसे ही जब दशहरे के मेले लगते थे तो मैं उनके साथ निकलता और ढेर सारे खिलौनों के साथ लौटता और आने पर मां कहती आप तो बेटे को बिगाड़ दोगे लेकिन पिताजी मुस्कुरा कर कहते ये नहीं बिगड़ेगा मेरे संस्कारों की धूप जो इसे सींच रही है...पिताजी आप तो चले गए
लेकिन वाकई आपके दिए संस्कारों से ही मेरी दुनिया रोशन है और चल रही है.. पंद्रह अगस्त और दशहरे के मेले तो हर साल आएंगे लेकिन वो दिन फिर कभी नहीं आएंगे....

1 comment:

Manjit Thakur said...

राघवेंद्र पता नहीं था कि आपके पिताजी चले गए....वो १५ अगस्त भी नहीं आएगा ना दशहरे के मेले आप पिता के बिना दशहरे को कभी एंज्वॉय नहीं कर पाएंगे। पिता को खोना दुनिया का सबसे बड़ा नुपकसान है। मैं ऐसे कह सकता हूं क्यों कि मैंने अपने पिता को तब खोया है जब मैं महज दो साल का था। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। लेकिन उनका आशीष आपके सर सदा बना रहे। आपके पिता की दी गई सीखे महज आपके लिए ही नहीं हम सब के लिए अनुकरणीय हैं..