Saturday, February 23, 2008

ग्रहण लगा शनिचरा को.....

दोस्तों के ताने सुनते-सुनते थक गया हूं। लेकिन मेरी बेचैनी कौन समझे हम कैसे बताएं शनिचरा को तो ग्रहण लग गया है। तकनीक की ज्यादा जानकारी नहीं है औऱ घर पर मेरे कंप्यूटर को भूत ने पकड़ लिया है। इंटरनेट और तमाम समस्याओं से जूझ रहा है। जहां काम करते हैं वहां इतनी फुरसत कभी मिलती नहीं कि कुछ किया जा सके। काम के बोझ तले इतना दबे हैं कि भूल जाते हैं कि ब्लॉग नाम की कोई चीज़ होती है। इतना काम है कि नेताजी की लाइनें याद आती हैं.. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। सारे विचार मन की गलियों में सर टकरा टकरा कर दम तोड़ रहे हैं। बौद्धिक जुगाली कहीं बौद्धिक उल्टी के रुप में बाहर ना आ जाए। क्या लिखूं कब लिखूं ये दर्द किसको बताऊं... लेकिन हार नहीं मानूंगा रार नई ठानूंगा... नहीं नहीं अटलजी की कविता से पीछे चलते हैं... मैथिलीजी को याद करते हैं.. नर हो ना निराश करो मन को कुछ काम करो कुछ नाम करो...