Tuesday, December 11, 2007

हम भी इसी वतन के....


उस चमचमाती कार में बैठी बच्ची को
उसने ललचाई नज़रों से देखा
अपने सपने को याद करने लगी
सोचा काश! मैं भी लाईन के उस पार होती
उस एक पल में हज़ार ख़्वाहिशें खिलने लगी
सोचा मैं भी स्कूल जाती
तभी सिग्नल ग्रीन हुआ
हार्न की आवाज़ गूंजने लगी
दिन में सपना टूटा
और वो अपनी धुन में खो जाती
फिर अख़बारों को सहेजती
चौराहे पर रुकने वालों को ख़रीदने को कहती
लेकिन अंधी दौड़ में भागते लोग
उसे परे हटा देते
हर रोज़ ये कहानी दुहरायी जाती
फिर भी वो तो अटल थी
मुस्कुराती और चल देती
सोचती मंज़िल कभी तो रास्ता देगी।।

1 comment:

sushant jha said...

बाबा, दिल को छूने बाली चीज कह दी आपने..अमूमन ये चीजे तो बत्ती हरी होते ही लोग भूल जाते है...